Sunday, July 5, 2015

भारशिव वंश (140-284ईस्वी)



भारशिव वंश (140-284ईस्वी)
छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व से ही भर जाती का उल्लेख मिलना प्रारम्भ हो जाता है। उए जाती प्राचीन नाग-वंशियो से आपस मे आबद्ध पायी जाती है। गौतम बुद्ध के समय मिर्जापुर मे इसे भर्ग, भग्ग या भार्ग  उल्लिखित किया गया है (Hindu Polity- by K.P. JAYASWAL PAGE-49)20 SE 10 ईसा पूर्व विदिशा के भूति नदी ने इसी भर से भारशिव वंश प्रारम्भ किया, इस तरह सन ईस्वी ही भरशिव वंश का उदभव काल माना जाता है। होशंगाबाद और जबलपुर के घने जंगलो से निकलकर बघेलखंड होते हुये पुनः ये अपने प्राचीन स्थानो पर पहुँच गए पर भर से भारशिव  बनकर। गंगा मे स्वयम को पवित्र कर भर लोग एकत्रित होना प्रारम्भ कर दिया। मिर्जापुर (कांतित, विष्णु पुराण मे इसे कांतिपुरी कहा गया है) मे आज भी उनका प्राचीन किला विद्धमान है। इस किले को मुसलमान शासको ने कुछ अंश तक तोड़ डाला है विंध्याचल की पहाड़ियो पर एक विशाल जमावड़ा हुआ। भर लोगो ने अपनी मातृभूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए शपथ खाई। अपनी सैन्यशक्ति का पुनः वे निर्माण करने लगे। इसी शक्ति को नाम दिया गया “विंध्यशक्ति” इस शक्ति के प्रमुख का नाम अज्ञात है। इसीहासकारो ने इस शक्ति को एक शासक के रूप मे निरूपित किया है।
विंध्यशक्ति  कौन ? – इतिहासकारो ने विंध्यशक्ति का जो उल्लेख किया है उससे यह ज्ञात नहीं होता की विंध्यशक्ति कोई शासक भी है पर इस शक्ति के द्वरा जिस नृवंश की स्थापना हुई उसे वकाटक वंश कहा गया ।
1-  A dynesty which took for its name vakataka came into existence about a century befor samudra gupta’s conquests. The first kin of the dynesty was vindhyashakti, a Brahmin” (history of india 150 A.D. TO 350 AD by k.p. jayaswal page 62)
डाक्टर के पी जयसवाल की उक्त टिप्पणी से ज्ञात  होता है की यह विंधायशक्ति वाकटको का आदि तो है पर इसे एक व्यक्ति के रूप मे स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता। इस शक्ति की कोई मुद्रा भी प्राप्त  नहीं है। डाक्टर जायसवाल की ये पंकतिया विंधायशक्ति को एक ताकत के रूप मे दर्शाती है – “its(स्थान नाचा, नागोड़ प्रदेश, जहा वकाटको की प्रारम्भिक राजधानी थी।)
Strategic position implies that it was built by a newly founded power, and it may justify the assertion conveyed by the name vindhyashakti that the vindhya was realy his strength.” Page 70.

पृष्ट 71 पर डाक्टर जायसवाल ने कुबूल किया है की विंध्यशक्ति (जिसका पुत्र प्रवरसेन था) की कोई भी मुद्रा प्रपट नहीं हुई – we do not find any coin of vindhyasakti father of pravarsena. पुनः वे कहते है –“vindhyashakti was a subordinate king under the bharshiva naga imperors and probably no coins were struck by him.”
पुराणो के अनुसार 36 वर्षो तक विंध्यशक्ति ने अपने सैन्यबल का समायोजन किया । इस प्रकार 248 से 284 ईस्वी तक इस शक्ति का गठन करने मे लगा। केन नहीं की एक सहायक नदी है। इस नदी के तट पर किलकिला नामक स्थान है। यह स्थान नागोड़ तथा पन्ना से नजदीक है इसी पर विंध्यशक्ति नामक ताकत का जन्म हुआ। भगवत पुराण मे किलकिला को विदिशा क्षेत्र मे बतया गया है। और यहा के शासको को विदिशा नाग कहा गया है।
उक्त विवरण से विंध्यशक्ति के मात्र एक नागो “विदिशा नाग” कहा गया है।
2. डाक्टर वी दी महाजन अजंता गुफा नो। XVI के शिलालेख से यह बताते है की विंध्यशक्ति वकाटक वंश की मुख्य शाखा का एक “पारिवारिक झण्डा” मात्र था।
the earliest ruler of the vakataka dynesty about whom we have any information was vindhyashakti. In an inscription in cave XVI at Ajanta, he is described as the “banner of the vakataka family.”  
3. डाँकटर रमाशंकर त्रिपाठी विंध्यशक्ति को राजी माने है और उसे शक्ति का प्रदीर्भाव उत्तरार्ध तीसरी शताब्दी का अंतिम समय मानते है।
4. विभिन्न पुरानो मे विंध्यशक्ति का उद्गम किलकिला स्थान बताया गया। वायु पुराण तथा भागवत पुराण मे इस शक्ति को नाग भारशीवो की शक्ति कहा गया है। यहाँ विदिशा वृष: का किलकिला वृष: हो गया है-
तेच-छानेन च कालेन ततह किलकिला वृष:
ततह किलकीलेभास्यच विंध्यशक्तिर्भविस्यती.
वृषन वैदेशकंस्चापी भविष्यम्च निवोधता - - वायु पुराण 358-360

भागवत पुराण मे यह स्पष्ट कहा गया है की किलकिला के शासक नागवंशी थे जिसका संस्थापक भूतिनंदी भारशिव था।
किलकिलायम नृपतयो भूतनन्दोदावंगिरीह;
शिशुनंदी च तद् भ्रात्रा, यशोनंदिह प्रवीरका; - - - भागवत पुराण 32-33
यह एक तथ्य जो विचारणीय है वह यह की प्रारसेन(प्रवीर) भी नागो की पंक्ति मे रखा गया है इस प्रवरसेन को अनेक इतिहासकार ब्राह्मण विंध्यशक्ति का पुत्र बताते है।
द्विज: प्रकाशो  भूवि विंध्यशक्ति : (A.W.S.R. Vol. IV PP 125 AND 128fn. Plate LVII)
विंध्यशक्ति को इतिहासकर ब्राह्मण बताते है। उसका गोत्र विष्णुव्रिधा गोत्र था। यह भारद्वाज गोत्र का एक विभाग है। विंध्यशक्ति के विषय मे कहा गया है की वह ब्राह्मण ही था क्योकि वाकटको ने बृहस्पतिसव (Brihaspati-Sava), अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था जो  केवल ब्राह्मण ही कर सकते थे तो क्या भरशिव नाग भी ब्राह्मण थे जिसने एक नही दस अश्वमेध यज्ञ किया था?
डाँकटर काशीप्रसाद जायसवाल ने पृष्ट 35 पर नव-नागो की पंक्तिया निर्धारित की है – पदमवाती के नवनगों को(वका) टका वंश, कतीपुर को भरशिव वंश तथा मथुरा के  नागो को यदुवंश कहा गया है। ये सभी वंश नागभारशिव की की सखा बटये गए है। इससे ज्ञात होता है की प्रवर्सेन भी भरशिव वंशी थे।  Epigraphia Indica (एपिग्रोफिया इंडिका) वाल्यूम IX पृष्ट 270 के अनुसार बालघात से प्राप्त ताम्र लेख मे प्रवरसेन के पुत्र रुद्रसेन को भरशिव वंश का शक बताया गया है-  
“भारशिवानाम महाराजा श्री रुद्रसेन”
विष्णु पुराण भी इसकी पुष्टि करता है , महाराज भवनाग (भारशिव वंश) के रुद्रसेन दौहित्र थे। ऐसा एक लेख से स्पष्ट है-
 “भारशिवानाम महाराजा भवनाग दौहित्रस्य
गौतमी पुत्रस्य वकाटकाना महाराजा चौरुद्र्सेनस्य.”  (Fleet,4 I.I. P.P. 237,245)
इतिहास मे यह त्रुटि की गयी की विंध्यशक्ति को र्जओ या भरशीवो के समूह की शक्ति न मानकर एक राजा मान लिया गया। दूसरा यह की ओरछा स्टेट मे स्तीथ स्थान बगट मे रहने वाले भारशीवो को वकट या वकाटक मानकर उन्हे ब्राह्मण बता दिया गया। वास्तव मे ऐसा इलिए हुआ की  विंध्यशक्ति से उभरा भारशिव प्रवरसेन(प्रवीर) बुंदेलखंड का (284-344 A D) शासक बना और उसने गौतमी ब्राह्मण की कन्या को अपनी महारानी बनाया। ब्राह्मणो ने उस पराक्रमी प्रवीर को अपनी कन्या देकर ब्राह्मणधर्म का प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया। प्रवरसेन का पुत्र “गौतमीपुत्र” हुआ जिसेन राज नही किया पर उसक पुत्र रुद्रसेन प्रथम यहाँ पराक्रमी राजा हुआ। गौतमीपुत्र, भारशिव वंश के भवनाग (290-215 A D) की कन्या से विवाह किया। इस प्रकार यह मातृवंश परंपरा जान पड़ती है। प्रवरसेन प्रथम ब्राह्मण कन्या से विवाह किया यदि वह ब्राह्मण होता तो गौतमीपुत्र को मातृवंशी क्यो कहा जाता? विंध्यशक्ति के विवाह का कही उल्लेख नहीं है। वह भागीरथी के पवित्र जल से अभिषिक्त होकर शक्ति के रूप मे उभरा गण समूह था। प्रवरसेन इस गण-समूह का प्रवीर शासक बना। अतः वकाटको का इतिहास भरशिव वंश से अलग करके देखना सारे साक्ष्यों को झूठलाना है।
नागो का प्रभुत्तव चार स्थानो पर पुराणों ने कहे है। 1 विदिशा 2 कांतिपुरी 3 मथुरा और 4 पदमवाती
विदिशा की नागवंश साखा  को पुराणों मे दो भागो मे बाँटा  गया है
1 शुंग वंश(184-20 BC) के पहले के नाग शासक 2 शुंग वंश के बाद के नाग शासक   

विदिशा
शुंग वंश की समाप्ती के पूर्व के नाग शासक
विदिशा बेतवा नदी से पूरब की ओर मालवा से पूर्व एक अति प्राचीन स्थान है। इस स्थान पर नागो ने अपनी राजधानी बनाई। इस राजधानी के प्रमुख नाग शासक-
1.   शेषनाग        110-90       ईसा पूर्व (B.C.)  
2.   भोगिन         90-80        ईसा पूर्व (B.C.)  
3.   रामचन्द्र        80-50        ईसा पूर्व (B.C.)  
4.   धर्मवर्मन       50-40        ईसा पूर्व (B.C.)  
5.   बंगारा          40-31        ईसा पूर्व (B.C.)  

शुंग वंश की समाप्ति के पश्चात के नाग शासक
शुंग वंश की समाइप्ति के पश्चात विदिशा पर जिन प्रमुख नाग शासको ने शासन किया उसमे भूतिनंदी या भूत नंदी का नाम बहुत महत्तवपूर्ण है। क्योकि यही से नागो को भारशिव कहना प्रारम्भ किया गया-
1.   भूतनंदी       20-10 ईसा पूर्व (B.C.)
2.   शिशुनंदी      10-25 ईसा पश्चात (A.D.)
3.   यशोनंदी        25-30 ईसा पश्चात (A.D.)  
4.   पुरुष दत्त
5.   उत्तम दत्त
6.   काम दत्त
7.   भव दत्त
8.   शिवनंदी या शिवदत्त
डाक्टर काशी प्रसाद जायसवाल ने अंतिम पाच शासको का नाम केवल प्राप्त शिलालेखों और मुद्राओ के आधार पर दिया है पर उनका क्रम काल अज्ञात है। विदिशा पर उपर्युक्त तेरह नाग शासको ने अपनी राजसत्ता कायम की थी जो लगभग 100 B.C. एसई 78 A.D. तक (200 वर्षो तक) चलती रही।  
 

मथुरा
मथुरा पर भारशिव वंश का साम्राज्य स्थापित करने वाला ऐतिहासिक पुरुष विरसेन था। आर्यावर्त के इतिहास का याय से परिवर्तन काल (Turning Point) कहा जाता है मथुरा के प्रमुख भारशिव शासक-
1.   नवनाग -        140-170 ईस्वी (A.D.)
2.   विरसेन          170-210 ईस्वी (A.D.)
3.   हयनाग -        210-245 ईस्वी (A.D.)
4.   त्रयनाग-         245-250 ईस्वी (A.D.)
5.   वरहीन नाग-      250-260 ईस्वी (A.D.)
6.   चरज नाग-       260-290 ईस्वी (A.D.)
7.   भवनाग -        290-315 ईस्वी (A.D.)
भवनाग के पश्चात मथुरा पर वकाटक सम्राटों का साम्राज्य स्थापित हो गया।
1.   कीर्तिसेन  -   315-340 ईस्वी (A.D.)
2.   निगा सेन -   340-344 ईस्वी (A.D.)




पद्मावती
नागो की पद्मावती प्राचीन राजधानी थाई। यह नरवर(ग्वालियर) के पास स्थित थी, यहा भरशिव नागों को (वका ) टका  वंश के अंतर्गत रखा गया है।
1.   भीम नाग -         210-230 ईस्वी (A.D.)
2.   स्कन्ध नाग –       230-250  ईस्वी (A.D.)
3.   बृहस्पति नाग -           250-270 ईस्वी (A.D.)
पद्मावती के शेष नाग वंशियो को वकाटको के सम्राटों मे दर्शाया गया है।
1.   व्याघ्र नाग -         270-290 ईस्वी (A.D.)
2.   देव नाग -          290-310 ईस्वी (A.D.)
3.   गनपति नाग -             310-344 ईस्वी (A.D.)

कांतिपुरी
मिर्जापुर जिले मे कांतिपुरी राजधानी नाग भारशीवो की प्रमुख राजधानियों मे से एक थी।





5 comments:

  1. क्या नल राजा इसी वंश के थे।
    वीरसेन का उल्लेख तो कई जगह मिला लेकिन राजा नल की वंशावली नहीं मिली।
    वीरसेन का पुत्र नल तथा नल का पुष्कर।
    नल-दमयंति कथा से आगे पीछे कहीं कोई जिक्र उपलब्ध नहीं हो रहा है। नल का जन्म कब हुआ कोई जानकारी नहीं मिल रही है। कृपया अवगत कराएँ

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  2. very important knowledge for student and society.

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