Sunday, July 5, 2015

महाराजा भारद्वाज



महाराजा भारद्वाज
(राजधानी- अवध )
भारशिव वंश के महाराजा भारद्वाज (maharaja bhardwaj) अवध के शासक थे। महाराजा भारद्वाज के शासनकाल का निर्धारण करना बड़ा जोखिम भरा कार्य है। फिर भी उनके विषय मे जो कुछ मुझे ऐतिहासिक तथ्य प्राप्त हुये है उनके आधार पर विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हु। यह सर्व विदित है की अवध क्षेत्र मे भर जाती की प्रधानता प्रागैतिहासिक काल से  ही थी। वे अवध से लेकर नेपाल की सीमा तक फैले हुये थे। टालमी ने जो भारत का मानचित्र अपने प्रवास के दौरान बनाया था तथा जिसका प्रकाशन “इंडियन एंटीक्वयरि” (Indian antiquary vol XII (1884) मे वर्गीज़ द्वारा किया गया है। उसके अनुसार भरदेवती आज का भरहुत है जिसे भरो ने बसाया था। इसकी संपुष्टि जनरल कनिंघम ने (“आर्कियोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया” वाल्यूम IX पेज 2-4 तथा वाल्यूम XX पेज 92)”  मे किया है। “बंगाल एशियाटिक जनरल, वाल्यूम XVI परिशिष्ठ पृष्ट 401-416 मे भी इस तथ्य को स्वीकार किया गया है। प्राचीन समय से ही अवध पर भरो का अधिकार रहा है। देखे “गजेटियर आफ की प्रिविंस आफ अवध” वाल्यूम II(1877)( पृष्ट-353-55)
महाराजा भारद्वाज उसी काल मे भारशीवो मे एक प्रबल शासक थे। उसी विषय मे एक कहानी प्रचलित है जो यहा बताना उचित समझ रहा हु।
भारत के प्राचीनतम नगरो मे अवध की पहचान होती है इस नगर को बसाने वाले देश के मूल लोग ही थे। इस बात के अनेक प्रमाण उपलब्ध है की यहा के प्रबल शासक भर जाती के लोग रह चुके है। श्री रामचन्द्र के पहले भी यहा भरो का विस्तृत साम्राज्य था। प्राचीन अयोध्या को सूर्यवंशियों ने ध्वस्त कर डाला जिसे यहा की मूल जातियो के लोगो ने बसाया था। सूर्यवंश के पाटन के बाद अयोध्या पुनः भरो के अधिकार क्षेत्र मे आ गया। इस आशय का वर्णन सर सी इलियट ने अपने ग्रंथ “क्रनिकल्स आफ उन्नाव मे विस्तृत रूप मे किया है। “इंडियन एंटीक्वयरि” संपादक जैस वर्गीज़ (1872) मे “ आन दी भर किंगस आफ ईस्टर्न अवध” नामक शीर्षक मे गोंडा का बी.सी.एस. अंग्रेज़ अधिकारी डब्ल्यू सी बेनेट कहता है की अवध के पूरब मे चार सौ वर्ष तक (1000 से 1400 ईस्वी) भरों का साम्राज्य था। इसी तरह का वर्णन फरिस्ता रेकार्डो मे भी मिलता है। जो “तबकत-ई-नसीरी” मे भी मिलता है। प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित (1971 ईस्वी), हमारे देश के राज्य उत्तर प्रदेश” के पृष्ट 16 एवं 17 पर अंकित है की सन 1194 से 1244 ईस्वी तक अवध पर भरो का साम्राज्य था। अवध क्षेत्र मे भरो की बहुलता के कारण श्रावस्ती पर सुहेल देव (1027-1077) तथा उनके वंशजो ने बहुत दिनो तक साम्राज्य स्थापित किया। देखे (हिस्ट्री आफ बहराइच, पृष्ट 116-117; आईना मसुदी, तरजुमा मिराते मसुदी, पृष्ट 78, संहारिणी चालीसा, पद्ध 40-40: डिस्ट्रिक्ट गजेटियर-लखनऊ, वाल्यूम 37, पृष्ट 138)
भारद्वाज नामक भरशिव वंश ने इसी अवध तथा गोरखपुर क्षेत्र पर अपना राज्य स्थापित किया। तत्पश्चात उसका उत्तराधिकारी सुरहा नामक शासक हुआ।
“in Gorakhpur they (bhars) claim to be the descendants of, and named from an early kshatriya raja named bhardwaja, whose sons strayed from the ancient way of lige and took to the use of meat and wine. Their descendant surha settled in the village of surauli, and wishing to marry a high caste rajput girl, was murdered by her relations and became an evil spirit, who does much damage still if he is not duly propitiated.”(the tribes and caste, vol II, page 1 by W. crooke.)
भारद्वाज उपनाम की जो गणना सेंसस रिपोर्ट 1891 मे भरो के साथ संयुक्त रूप से दी गयी है। वह इस तथ्य को साथ मे या ध्यान मे रख कर दी गयी है की ये भारद्वाज उपनाम वाले लोग ब्राह्मण जाती के भारद्वाज उपनाम वाले लोगो से अलग थे। सन 1891 ईस्वी की जनगणना के अनुसार बलिया मे 86, गोरखपुर मे 1498 तथा आजमगढ़ मे 2563 लोग भारद्वाज उपनाम से जाने जाते थे जो भर जाती से संबन्धित थे। भरो मे भारद्वाज उपनाम ऋषि भारद्वाज से नही आया है। बल्कि यह उपनाम यही भर राजा (अवध) भारद्वाज के नाम से बना है, वे अवध के भर राजा भारद्वाज की संतति के रूप मे लिखते है न की ऋषि भारद्वाज के रूप मे, जिनसे भारद्वाज गोत्र बना। मुंडको पनिषद, प्रथम मुंड, प्रथम खंड (अ ) श्लोक दो मे इसकी व्याख्या इस प्रकार दी गयी है-।
“ब्रह्मा ने जिस विधा का अथर्वा को उपदेश दिया था, उसी ब्रह्म विधा को अथर्वा ने पहले अंगी ऋषि से कहा था। उन अंगी ऋषि ने भरद्वाज गोत्री सत्यवट नामक ऋषि को बतलाई, भारद्वाज ने पहले वालो से प्राप्ति हुई इस परंपरागत विधा को अंगीरा नामक ऋषि से कहा।   यहा ऋषि का नाम भरद्वाज है तथा इस गोत्र मे उत्पन्न को भारद्वाज कहते है। भारद्वाज का अर्थ भरद्वाज गोत्र मे उत्पन्न.”
प्रस्तुत है भर राजा भारद्वाज के प्रणय-बंधन का एक प्रसंग-
स्निग्ध, सुरभित,मंद समीर से सम्पूर्ण वातावरण आप्लावित था। सरजू की पावन जलधारा मन्द-मन्द गजगति से लहरों के साथ अनवरत बहती जा रही थी। नदी कुलो पर हरियाली भरे उपवनो से चुरुंगुनों के कलरव से दिव्य सरगम उभर रही थी। जाड़ा भी कम हो चला था। स्वच्छ, मन्द शीतलता से भरी सुगंधित प्राणवायु नासारंघरों से प्रवेश करती हुई समग्र गात को पुलकित कर रही थी। वायु के स्पर्श से रोम-रोम आनंदित हो रहे थे। नदी के उत्तरी कुल पर झुरमुटों के बीच एक सप्तक ऋषि का भव्य आश्रम बना हुआ था। घने जंगलो मे, जो आश्रम से लगा हुआ था। असंख्य वन्य प्राणी स्वच्छंद विचरण कर रहे थे। आखेट करना राजाओ, महाराजाओ, महाराजा का व्यसन था या कहिए की उनके शौर्य का प्रतीक था। अदभूत शक्तिवाले शार्दूलों का वध करना राजाओ को सुशोभित करता था।
कंधे पर तूणीर, हाथ मे धनुष, गले मे स्वर्ण-मणियो की माला, गोल-कपोल, उच्च ललाट, गंभीर-मृकृटि, तेजस्वी आभामय मुख मण्डल, विशाल-चक्षु, गौर-वर्ण, मणिमय मुकुट से सुसज्जित, श्वेत वर्ण के अश्र्व से विशाल-वक्षधारी, वीर वेष धारी एक युवक आश्रम के समक्ष उतरा। उसने एक अंगरक्षक को सांकेतिक आदेश द्वारा आश्रम के प्राचीर मे प्रवेश कर तपस्वी के परिचय जानने को कहा। आश्रम के मुख्य द्वार का कपाट अंदर से बंद था। दस्तक देने पर आश्रम की ऋषि बाला ने कपट खोला। अंगरक्षक को देखकर मुनि कुमारी ने कहा, “पधारिए,स्वागत है.” अंगरक्षक ने सधन्यवाद कहा की “मै अवध नरेश, महाराजाधिराज, भारशिव कुल-सूर्य महाराजा भरद्वाज का अंगरक्षक हु। महाराजा इस विपिन मे आखेट खेलते हुये अनजाने यहाँ तक पहुँच आये है, जो प्यास से संतप्त है। हे मुनीकुमारी! यदि समुचित हो तो महर्षि  को महाराजा के आगमन की जब सुचना दे.” “ठहरिये रक्षक! मै अभी महर्षि की अनुज्ञा लेकर आती हूँ। मुनीकुमारी ने कहा, ने कहा , और महर्षि से आज्ञा लेने अन्तः पुर मे प्रवेश किया। उस कुमारी ने महाराजा के आगमन की जब सूचना महर्षि को दी तब वे प्रफुल्लित हो उठे  और आवभगत के लिए स्वयं आश्रम से बाहर आ गये। अवध पति भारद्वाज ने महर्षि को प्रणाम किया। महर्षि ने “आयुष्यमान भव” कहकर उन्हे आशीर्वाद दिया। और आश्रम के अन्तःपुर मे प्रवेश के लिए अमांत्रित किया। समुचित आसन पर बैठा कर कुशल क्षेम पूछने  के उपरांत महर्षि ने अपना नाम “सप्तक ऋषि” बताया और अपनी इकलौती कन्या चारुप्रिया को महाराजा के लिए जलपान उपस्थित करने का आदेश दिया। जलपान के उपरांत राजा ने कहा, “यह मुनिश्रेष्ठ! इस वियावान जंगल मे आप को कोई संताप तो नहीं ? कोई कष्ट तो नहीं, यह अनुचर आप की सेवा मे सर्वदा तत्पर रहेगा,” महर्षि ने मुस्कुराते हुये कहा, “हे नर श्रेष्ठ ! आप के साम्राज्य मे जब सभी नर-नारी स्वछ्न्द्ता से जीवन-निर्वाह कर रहे है, सभी धन-धान्य से पूर्ण है। दस्युओ का कोई प्रकोप नही है। सारी प्रजा निसंताप है, तब मुझे कोई संताप कैसे हो सकता है? प्रजा का  सुखी होना ही राजा की अंतिम सफलता होती है। महान भारशीवो को शासक देखकर अवध की पावन धरती महापावन हो गयी है। यहा की दिव्यता ही मेरे मार्ग को प्रसस्त करती है। यह मेरी पुत्री सर्वगुण सम्पन्न है। इसकी जननी इसी के गुण एवं स्वरूप की है। पर वह इस समय पुजा के लिए पुष्प लेने जंगल की गहन वाटिका मे गयी हुई है। महाराजा भरद्वाज को मुनि कुमारी ने प्रणाम किया। इतने समय मे मुनि पत्नी ने आश्रम मे पुजा के निमित्त पुष्प लिए प्रवेश किया। महाराजा ने उस साध्वी को प्रणाम किया। समय अधिक व्यतीत हो चुका था। विश्राम के उपरांत महाराजा प्रस्थान के लिए अनुज्ञा करने लगे। तब तक रवि-रश्मि की तीव्रता समाप्त हो चुकी थी। नदी के कुल पर झुरमुटों से पक्षी कलरव की संगीत मे तीव्रता आ चुकी थी। असमय जानकर महर्षि ने महाराजा से आज आश्रम मे ही निवास करने को कहा। महाराजा समय तथा महर्षि की आज्ञा को ध्यान मे रखते हुये आज रात ठहरने की। स्वीकृति दे दी।
महर्षि के आश्रम मे चारुप्रिया ने महाराजा की जो सेवा तथा आवभगत की उससे वे अति आनंदित हुये। उनका चारुप्रिया के प्रति आकर्षण बढ़ गया। मुनि-तनया भी महाराजा को अन्तः कारण से चाहने लगी। ब्रह्ममुहूर्ती मे ही महाराजा ने महर्षि का आशीर्वाद लेकर राजधानी अवध के लिए प्रस्थान किया। चारुप्रिया ने अपनी जननी से महाराजा भरद्वाज के प्रति स्वयं के आकर्षण का जब रहस्य बताया तब वे इसे सामान्य व्यवहार ही समझ बैठी। पर चारुप्रिया ने जब महाराजा से प्रणय-सूत्र मे बंधने का अपनी जननी से प्रस्ताव किया तो वे इसे गंभीर मानने लगी। महर्षि पत्नी ने जब महर्षि सप्तक से तेजस्वी सम्राट भरद्वाज से चारुप्रिया के प्रणय-प्रस्ताव की चर्चा की तो वे इसे अमान्य कर गये। महर्षि ने कहा, “हे साध्वी! देवता हम ऋषियों से श्रेस्ठ है। हम ऋषिगण ब्राह्मणो से श्रेस्ठ है, ब्राह्मण राजाओ से श्रेस्ठ, राजा वैश्यो से श्रेस्ठ है, तथा वैश्य शूद्रो से श्रेस्ठ कहे गये है। अपनी कन्या को अपने से श्रेस्ठ यशस्वी कुल मे ही देना चाहिए, अन्यथा नही” महर्षि पत्नी ने कहा, “हे मुनिवर ! चारुप्रिया तो अवध नरेश भारद्वाज से विवाह करने का प्रण ठान चुकी है, अन्यथा आजीवन कुंवारी ही रहने को वह अपनी कर्म-स्थली समझी है।उसके हठ के समक्ष मै  निरुत्तर रह जाती हु। उसका अपना कोई अलग दर्शन बना जान पड़ता है। जिसे मै समझने मे स्वयं को असमर्थ पाती जी हु। महर्षि सप्तक ने चारुप्रिया को बुलाकर कहा, “हे पुत्री ! तुम सर्वगुण सम्पन्न हो, पर जन्म देने के कारण तुम्हारा लाभालाभ सोचना मेरा परमं कर्तव्य है। महाराजा भारशिव कुल मे उत्पन्न भर शासक, अवधपति भारद्वाज भर सम्राटो मे सर्वश्रेस्ठ है। वे ही भारशिव कहलाते है। उनके पूर्वजो ने भगवान शंकर को दस बार अश्वमेघ-यज्ञ करके प्रसन्न कर लिया था। वे उत्तम कुल के सम्राट है। इसे कोई अमान्य नहीं कर सकता। पर वे महर्षियो से श्रेष्ठ नहीं माने जा सकते अतः ऋषि कन्या होने के नाते तुम्हें उन्हे अन्तः करण से निकाल देना चाहिए।“ चारुप्रिया  ने कहा, हे पिताश्री ! आपका शास्त्र क्या आदेश देता है। इससे मै अनभिज्ञ हु, पर इतना अवश्य जानती हु की प्रणय-बंधन जनक-जननी की पहल निमित्त मात्र है। मेरे भविष्य की श्रेष्ठता ही मेरा  प्रेम है। प्रेम नैसर्गिक है और इसे कृत्रिम आवर्ती से आच्छादित करना उसका अपमान करना है, उच्चता तथा निम्नता का क्रम बनाना प्रकृति के प्रतिकूल आचरण करने का हठ है। जन्म प्रकृति है, वर्ण- व्यवस्था विकृति है और जाती व्यवस्था विकृतितम विकृति है, अतः जन्म ही प्रणय बंधन का प्राथमिक घटक है, हे तात ! महाराजा भारद्वाज भारशिव कुल के शोदित क्षत्रिय है, भरो मे सर्वश्रेस्ठ तथा राजाओ मे महाराजाधिराज है, मैंने उनमे वे सभी गुण देखे है। जो श्रेस्ठ राजाओं मे होने चाहिए”। महर्षि ने कहा, “मै शास्त्र वचन को नहीं तोड़ सकता.” “तो मे प्रकृति-पदत्त गुण का परित्याग कैसे कर सकता हु,” चारुप्रिया ने दृढ़ता दिखाई। प्रकृति प्रदत्त गुण तथा शास्त्र वचन मे शास्त्रार्थ होता रहा। वास्तविक ईश्वरीय शक्ति तथा काल्पनिक ईश्वरीय शक्ति मे वाग्युद्ध की यह प्रथम घटना नहीं थी। पर विजय इसमे नारी के दृढ़ प्रतिज्ञा की हुई। प्रकृति की हुई।
एक बार सप्तक ऋषि के आश्रम मे महर्षि दूर्वाषा का पदार्पण हुआ। ऋषि सप्तक ने चारुप्रिया के हट का समाधान खोजने के उद्देश्य से इस प्रश्न को महर्षि दूर्वाषा के समक्ष रखा। दूर्वाषा ने कहा, “कन्या की शोभा वर से होती है। और उसकी कोई जाती नहीं होती है। जिस जाति मे वह व्याही जाती उसी जाति की होती है। स्त्री एक खेती है। जैसे अन्न बोएंगे वैसा ही फल लगेगा। अतः चारुप्रिया का प्राकृतिक पक्ष सबल है और आप को इसे अमान्य नही करना चाहिए.”
महर्षि दूर्वाषा के सत्य वचन सुनकर ऋषि सप्तक ने अपना मत स्थगित कर दिया और अवधपुरी मे भारद्वाज राजा के यहाँ चारुप्रिया से विवाह करने का शुभ संदेश भेज दिया। शुभ मुहूर्त पर राजा भारद्वाज का चारुप्रिया से विवाह करने का शुभ संदेश भेज दिया। शुभ मुहूर्त पर राजा भारद्वाज का चारुप्रिया से विवाह सम्पन्न हो गया। इस प्रणय बंधन से पुराण पंथियो मे घोर निराशा का वातावरण उत्पन्न हो गया। एक भारशिव वंश के शासक का ऋषि कन्या के साथ प्रणय-सूत्र मे बंधना उच्च वर्ण के लोगो को अच्छा नही लगा। फलतः राजा के प्रति सामाजिक षडयंत्र रचे जाने लगे।
कुछ समय पश्चात चारुप्रिया ने सुरहा नामक पुत्र रत्न को जन्म दिया। जो राजा भारद्वाज के बाद अवध के सिंहासन पर बैठा। सुरहा से देश के संभ्रांत वर्ग के लोग द्वेष रखने लगे, यह द्वेष तब अपने चरम विंदु पर पहुच गया जब शासक सुरहा ने एक बृहद यज्ञ का जहाँ अनुस्ठान करवाया था। उस गाँव का नाम ही सुरहा गाँव रखा गया। वर्तमान समय मे सुरहा गांव का नाम बदल कर सुरौली हो गया है। जो गोरखपुर जिले के अंतर्गत आता है।
महाराजा भारद्वाज के शासन काल का समय निर्धारण करना अत्यंत दुष्कर कार्य है। ऐसा जान पड़ता है की अवध पर सूर्य वंशियो के शासन करने के पहले वे यहा के शासक थे। सी.ए. इलियट ने जो विवरण दिया है उससे इस तथ्य की संभावना और बढ़ जाती है। वे कहते है।
WHEN THE ARYAN RACE INVADED THE GANGETIC VALLY, AND THE SURAJBANSIS SETTLED IN AJUDHIYA, THE NATURAL RESOURCE FOR THE ABORIGINES WOULD BE TO FLY TO THE HILLS, AND FIND REFUGE IS THEIR IMPENETRABLE FASTNESSES, GIRDED ABOUT WITH THE DEATHLY TARAI, WHEN THE CURTAIN RISES AGAIN, WE FIND AJUDHIYA DESTROYED, THE SURAJBANSIS UTTERLY VANISHED, AND A GREAT EXTENT OF COUNTRY RULED OVER BY ABORIGINES CALL CHERUS IN THE FAR EAST, BHARS IN THE CENTRE, AND RAJPASIS IN THE WEST”(CHRONIELES OF OONAO PAGE 27 by- C.A. ELLIOTT)
स्टेटिस्टिकल मेमोयर आफ दी गाजीपुर डिस्ट्रिक्ट” पार्ट 1 पृष्ट 46 से ज्ञात होता है की वहा सुरहा नामक एक प्रसिद्ध झील है। जबकि मौलाना दाऊद दतमई कृत “चंदायन” के संस्थापक परमेश्वरी लालगुप्त (अध्यक्ष पटना संग्रहालय) लोरक-चाँद से संबंध लोक कथाए-भोजपुरी रूप मे पृष्ट 360 पर बताते है की “वहाँ बायी ओर सुरहा और दाई और गंगा बहती है। उसके आगे दवहा नदी है जहा तीनों का संगम है। वही बारह गाव का गौरा गुजरात नामक प्रदेश है।  वहा काका कुबे नामक एक कन्नौजी ग्वाला रहता है। उसके दो पुत्र है। बड़े का नाम संवरू है। उसका ब्याह सुरौली मे राजा बामदेव की लड़की मैदागिन से हुआ है। छोटे का नाम लोरिक है। जो अभी कुँवारा है.”
उक्त विवरण से पता चलता है की सुरहा राजा के नाम से सुरहा नदी तथा सुरौली गाँव दो नाम पड़े। शेष विवरण अभी अज्ञात प्रतीत हो रहा है।
कुछ राजभर लोग अपना उपनाम भारद्वाज लिखने की प्रथा चलाई थी। पर जब यह ज्ञात हुआ की ब्राह्मणो का एक उपनाम भी भारद्वाज है तब यह प्रथा वापस ले ली गई क्योकि समानार्थी उपनाम से जाती निर्धारण मे समस्या खड़ी हो गई थी। प्राय: हिन्दू लोग अपना गोत्र खोजते है। ऐसा वे इसलिए करना चाहते है की किसी ऋषि के बाड़े की वे संतान है? पर ऐसा खोजना सर्वथा असत्य है। आर्यवादी ऋषि तब भारत मे प्रविष्ट भी नहीं हुये थे जबसे भर या भरत जाती इस देश मे निवास कर रही थी। स्वयम को कसी आर्यवादी ऋषि की संतान कह कर या गोत्र खोजकर राजभर समाज स्वयम को ही गाली देना या वर्ण शंकर पद्दती मे समा जाना चाहता है क्या यह उचित है।     

भर / राजभर साम्राज्य पुस्तक से लिया गया
पृस्ठसंख्या 117 से 122 
लेखक श्री एम बी राजभर 
(मग्गूराम बंगल राजभर)
{राजभर रत्न }

19 comments:

  1. Thank you so much sir for this information

    ReplyDelete
  2. Kuch samjh nhi aaya bas ye pta karna hai ham bhangi h ya chamar h ya brahmin h ya kya h

    ReplyDelete
    Replies
    1. Rajput h for more knowledge plz search about raja suhel dev rajbhar

      Delete
    2. क्षत्रिय है हम लोग

      Delete
  3. Sir hame rajbhar, bhar, bhardwaj. ke
    bare me jati ke baare me gotra baare me poora jankari chahie please Sir. By

    ReplyDelete
    Replies
    1. Cast ek Andhvishvas h cast kuch nhi hota sab insano ki banai ek kali pratha h jo samaj ke ander dimag ki trah kha rha h bhagwan ne sab ko ek jaisa bnya kisi ko koi vishesh nishamn yani body pe mohar nhi lagai ki aap is cast ke ho . Education h jaha vaha cast mayne nhi rkhta hindu ko badhawa de na ki cast ko

      Delete
  4. What is the rule called? What is the rule of Mishra Bhardwaj? Please let us know

    ReplyDelete
  5. Sir plz told us the gotr and jati of rajbhar although I used bhardwaj yet. But for inter caste marriage, normally people ask about gotr so what is this?

    ReplyDelete
  6. Sir piz told us gotr Bhar Rajbhar Bhardwaj ki puri janakari chahiye

    ReplyDelete
  7. प्रतिष्ठामें,
    जनसूचनाधिकारी
    प्रमुख सचिव संस्कृति विभाग उ प्र शासन
    बापू भवन सचिवालय
    लखनऊ
    विषय - जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत सूचना उपलब्ध कराने के संबंध में -
    महोदय,
    सादर निवेदन है कि ऊ प्र के जनपद आज़मगढ़ के तहसील मार्टीनगंज के अंतर्गत ग्रामसभा देहदुआर में उत्तर मध्यकाल की स्थित देहदुआर की कोट जिसे राजा असिलदेव राजभर की कोट भी कहा जाता है जिसे संस्कृति विभाग के उ प्र राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा राजकीय संरक्षण में लिया गया है कृपया जनहित में उक्त कोट के संबंध में निम्नलिखित सूचनाओं की प्रमाणित प्रति की आवश्यकता है !
    1- क्या Azamgarh A Gazzetter Vol-XXXIII
    -Distric Gazzetters of United Provinces of Agara and Oudh -government Press 1911 के Prishth 155 chapter V - History -के पैरा 9,10,11 में उक्त देहदुआर की कोट को राजा असिलदेव राजभर की कोट बताया गया है ? यदि हाँ तो उसकी प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराने का कष्ट करें !
    2 - क्या उक्त देहदुआर की कोट को सरकार द्वारा राजकीय संरक्षण में लिए जाने हेतु मेरे द्वारा लिखित पत्र सं 238/16 दिनांक 14/07/2016 निदेशक उ प्र राज्य पुरातत्व विभाग को प्राप्त हुआ है ? यदि हाँ तो उसकी प्रमाणित प्रति एवं उक्त के संबंध में अब तक की गई कार्यवाही की समस्त पत्राचार की प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराने का कष्ट करें !
    3- क्या उक्त देहदुआर अर्थात राजा असिलदेव राजभर की कोट को उ प्र राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा राजकीय संरक्षण में लिए जाने के संबंध में विभागीय स्तर पर प्रक्रियानुसार नोटिफिकेशन जारी हुआ है ?यदि हाँ तो उन समस्त पत्रों की प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराएं !
    4- क्या उक्त कोट को सरकार द्वारा अधिग्रहित कर सुंदरीकरण/फिनिसिंग आदि हेतु वांछित धनराशि उपलब्ध कराई जा रही है ? यदि हाँ तो कितनी और कब तक ?
    अतः आपसे प्रबल अनुरोध है कि जनहित में उपरोक्त सूचनाओं की प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराने का कष्ट करें !
    नियमानुसार दस रुपये की नगद धनराशि नोट सं ------------ ------ ---- साथ मे संलग्न है
    सम्मान सहित
    भवदीय
    डॉ पंचम राजभर
    पूर्व राष्ट्रीय महासचिव - अखिल भारतीय राजभर संगठन -
    आवास - दुबरा बाजार (बरदह) जनपद आज़मगढ़ उ प्र -276301 -- मोबाइल - 9452292260/9889506060 - drprajbhar1962@gmail.com

    ReplyDelete
  8. https://www.facebook.com/100038198023873/posts/578861353397127/?sfnsn=mo

    ReplyDelete
  9. https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=444126380617843&id=100050614533304&sfnsn=wiwspwa

    ReplyDelete
  10. https://www.facebook.com/100072896934753/posts/115420110897886/?sfnsn=wiwspmo

    ReplyDelete
    Replies
    1. *याचना*
      प्रतिष्ठामें,
      माननीय अध्यक्ष जी
      राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भारत सरकार नई दिल्ली - महोदय,
      कृपया सानुरोध याचना सहित उपर्युक्त विषयक का संज्ञान ग्रहण करने की कृपा करें जिसमें अंग्रेजी हुकूमत कार्यकाल में ब्रिटिश इंडिया सेंट्रल एक्ट *क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1871* में प्रतिबंधित ब्रिटिश बिद्रोही जातियों/उपजातियों को इस कलंकित जरायम पेशावर काला क़ानून से 31 अगस्त 1952 को मुक्ति मिलने के बाद भारतीय लोकतंत्र में प्राविधानों के तहत वंचित डी एन टी समुदाय को सुनिश्चित वांछनीय सुविधाएं प्रदान किये जाने हेतु जाति प्रमाणपत्र निर्गत किये जाने संबंधी उ प्र सरकार के समाज कल्याण विभाग अनुभाग 3- द्वारा समय समय पर जारी किए गए शासनादेश में प्रामाणिक अभिलेखों/साक्ष्यों की अनदेखी कर त्रुटिपूर्ण/भ्रामक,अनैतिक विरोधाभासी आदेश का निर्गत किया है--उदाहरण स्वरूप - अन्य जातियों के अलावा *भर जाति* को भी शासनादेश दिनांक 12 मई 1961 तथा 26 मार्च 1962 के अनुसार विमुक्त जातियों की सूची में (जो ओ बी सी जातियों की सूची में भी सम्मिलित है)श्रेणीबद्ध है ! जो पूर्व में चिन्हित जनपदों में सूचीबद्ध थी, परंतु 27 अप्रैल 1977 एवं 28 फरवरी 1983 तथा 23 सितंबर 2002 के अनुसार एरिया रिस्ट्रिक्शन(क्षेत्रीयता) का प्रतिबंध हटाते हुए पूरे प्रदेश के सम्पूर्ण जनपदों हेतु जाति प्रमाणपत्र जारी किए जारी किए जाने के विधिसम्मत शासनादेश निर्गत हुआ ! परंतु बिना किसी ठोस कारण के ही समाज कल्याण अनुभाग 3 उ प्र शासन द्वारा 10 जून 2013 द्वारा निर्गत शासनादेश में पूर्व में जारी *सम्पूर्ण प्रदेश हेतु मान्य* को हटाकर पुनः *चिन्हित* कुछ जनपद के लिए आदेश कर दिया गया ,और फिर इसी विभाग द्वारा परीक्षणोपरांत दिनांक *24 अक्टूबर 2017* को पुनः सम्पूर्ण प्रदेश के लिए शासनादेश निर्गत हुआ तथा अद्यतन अब *6 अगस्त 2021* को पुनः *चिन्हित जनपद का प्रतिबंध* का आदेश कर दिया गया है जो त्रुटिपूर्ण/विसंगतिपूर्ण बिल्कुल अवैधानिक ,अनैतिक एवं हास्यास्पद है ! जबकि समाज कल्याण विभाग उ प्र शासन के इस विरोधाभासी आदेश से इस समुदाय के लोगों को बिना कोई वैधानिक कारण के ही बार बार प्रतिबंध हटाना व लगाने से मूलभूत संबैधानिक अधिकारों का हनन किया जाने लगा तो विवश होकर अन्य लोगों के अलावा मैने भी इस समुदाय के प्रति न्यायोचित कार्यवाही एवं वैधानिक संरक्षण दिए जाने के लिए सरकार सहित माननीय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से याचना किया तो मा आयोग ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण विभाग उ प्र को समन जारी किया और उस नोटिस के जबाब में प्रमुख सचिव समाज कल्याण विभाग श्री के रविन्द्र नायक द्वारा दिनांक 29 सितम्बर 2021 मा आयोग को भेजी गई भ्रामक जांच आख्या में पुनः 6 अगस्त 2021 को विसंगतिपूर्ण शासनादेश जारी किया है !
      अतः आपसे प्रबल याचना है कि वर्णित परिस्थितियों में मानवीय आधार पर समस्त प्रामाणिक अभिलेखों, शासनादेशों का तथ्यात्मक परीक्षण करते हुए इस समुदाय के संवैधानिक अधिकारों को संरक्षण प्रदान कर न्यायसंगत कार्यवाही करने की कृपा करें ! आभारी रहूंगा कि कृत कार्यवाही से हमें भी अवगत कराने की कृपा करेंगे !
      सम्मान सहित
      संलग्नक - उपरोक्तानुसार -
      प्रतिलिपि -तत्सम्बधित को समुचित कार्यवाही हेतु सादर सम्प्रेषित --
      भवदीय
      डॉ पंचम राजभर - सोशल एक्टिविस्ट - ex - राष्ट्रीय महासचिव - अखिल भारतीय राजभर संगठन
      -आवास - दुबरा बाजार,बरदह आज़मगढ़ उ प्र 276301 - -9889506050/9452292260 - drprajbhar1962@gmail. com

      Delete
  11. *प्रेस विज्ञप्ति*
    ---------------------
    राष्ट्रवीर महाराजा सुहेलदेव राजभर जी की जन्मस्थली, कर्मस्थली जनपद बलरामपुर जिले में स्थित 11 वीं सदी के राष्ट्रनायक तत्कालीन श्रावस्ती के सम्राट राष्ट्रवीर महाराजा सुहेलदेव राजभर जी की स्मृति में *उत्तर प्रदेश सरकार के वन विभाग* द्वारा दिनांक *14 नवम्बर 1988* को एक वन्य जीव विहार का गठन किया गया जिसका नाम सोहेलवा वन्य जीव विहार रखा गया ! जो कि राजभर कुलगौरव महाराजा सुहेलदेव जी के नाम पर अशुद्ध ,असंसदीय, अमर्यादित,अपमानजनक नाम *सोहेलवा* रखा गया ! जिसके नाम शुद्धिकरण हेतु शासन स्तर से की गई त्रुटि को संशोधित कर शुद्ध नाम *राष्ट्रवीर महाराजा सुहेलदेव राजभर वन्य जीव विहार* किये जाने का अनुरोध किया गया जिसे वन विभाग उ प्र शासन के शासकीय पत्र दिनांक *8 जुलाई 2002* को आंशिक संशोधन कर *सुहेलदेव वन्य जीव विहार बलरामपुर* कर दिया गया है का शासनादेश निर्गत हुआ ! परंतु उ प्र फारेस्ट डिपार्टमेंट द्वारा स्थानीय विभागीय स्तर पर 8 जुलाई 2002 के शासनादेश होने के बावजूद भी अभीतक सुहेलदेव के स्थान पर सोहेलवा ही लिखा व कहा जा रहा है जोकि स्पष्ट रूप से शासनादेश का उल्लंघन एव जनभावनाओं के विपरीत है जिससे महाराजा सुहेलदेव जी के अनुयायियों, राष्ट्रभक्तों एवं उनके वंशजों में निराशा तथा आक्रोश की भावना बढती जा रही है ! ऐसी परिस्थिति में महान देश भक्त के नाम के त्रुटि संशोधन हेतु तमाम जनप्रतिनिधियों एवं मेरे द्वारा भी कई बार आई जी आर एस,जनसुनवाई एवं प्रमुख सचिव ,वन एवं प्रमुख वन संरक्षक उ प्र शासन को पत्र लिखा परंतु न्यायोचित कार्यवाही नहीं हुई !जिससे व्यथित एवं निराश होकर न्यायसंगत कार्यवाही की प्रत्याशा में आगामी 25 अक्टूबर 2021 को सोहेलवा वन्य जीव विहार कार्यालय परिसर बलरामपुर में लोकतांत्रिक ढंग से मैं डॉ पंचम राजभर ,पूर्व सम्पादक सुहेलदेव स्मृति मा प एवं पूर्व राष्ट्रीय महासचिव ,अखिल भारतीय राजभर संगठन -द्वारा शासन/प्रशासन को पूर्व में लिखित रूप से दी गयी सूचना के अनुसार वांछित कार्यवाही न होने पर आमरण अनशन पर बैठने के लिए बाध्य हूँगा जिसकी पूरी जिम्मेदारी शासन/प्रशासन की होगी ! डॉ पंचम राजभर 🙏
    [05/10,/2021] Dr Pancham Rajbhar:

    ReplyDelete
  12. प्रतिष्ठामें,
    माननीय मुख्यमंत्री जी
    असम सरकार डिसपुर गुहावटी असम
    विषय -भर/राजभर (Bhar/Rajbhar) जाति को असम प्रदेश में जातियों की राज्य/केंद्रीय स्तर पर संवैधानिक सूची में नवीन प्रविष्टि के सम्बंध में अनुस्मरण पत्र
    महोदय ,
    सादर आपका ध्यान भारत की प्राचीन मूलतः जातियों में द्रविड़ियन /अबोरिजिन मूल की भर Bhar ,synonyms राजभर, Rajbhar जाति जिसका कि एक सशक्त गौरवशाली इतिहास है ! जिसने विदेशी आक्रांताओं से देश की एकता अखंडता एवं संस्कृति सभ्यता की रक्षा तथा उसकी आन बान शान के लिए दुशमनो के शोषण, अन्याय,अत्याचार तथा अमानवीय दमनचक्र को झेलते हुए सदैव सतत सशस्त्र संघर्ष किया है ऐसी स्वाभिमानी कौम को विदेशी दुशमनो का प्रतिकार करने पर खासतौर से मुगलकाल में अमानवीय दमनचक्र द्वारा सरेआम कत्लेआम तक किया गया इतना ही नहीं ब्रिटिश शासन काल में तो देश की स्वाधीनता के लिए ब्रिटानिया हुकूमत के खिलाफ 1857 की क्रांति में गुरिल्ला वॉर द्वारा सशस्त्र बगावत के कारण अंग्रेजी शासन द्वारा 1871 ईस्वी में ब्रिटिश बिद्रोही मानते हुए क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के तहत जन्मजात अपराधी घोषित कर प्रतिबंधित कर सामाजिक व प्रशासनिक असहनीय शोषण व उत्पीड़न किया जिससे परिस्थितियों वश मजबूर होकर मुख्यतः मूलतः निवासरत उत्तर प्रदेश ,बिहार,मध्यप्रदेश आदि मूल स्थानों से जीविकोपार्जन हेतु देश के विभिन्न प्रान्तों/भूभागों वन, जंगल,नदी नालों के किनारों में विस्थापित होते गए ! उसी कड़ी में असम प्रदेश के विभिन्न जनपदों में भी इस समुदाय के लोग आज़ादी के पूर्व से ही अस्थायी/स्थायी रूप से निवासरत होकर परिवार का भरण पोषण करते आ रहे हैं ! परंतु आज़ादी के बाद भारतीय लोकतंत्र में नीहित प्राविधानों के तहत सदियों से वंचित इस समुदाय को ऐतिहासिक कंपैसेशन के आधार पर न्यायोचित हक व अधिकार नहीं मिला और अपने ही देश मे अपनी पहचान सम्मान और मौलिक अधिकार मोहताज होकर शासन/प्रशासन की उपेक्षा के कारण खानाबदोश की जिंदगी जीने पर मजबूर हो गए ! चूंकि भर (मूल जति) प्रायः पूरे देश मे निवासरत है ! तथा कालांतर में इस जाति की अपनी एक अलग पहचान,रहन, सहन,बोल भाषा, खान पान,रीति रिवाज,जन्म से लेकर मृत्यु संस्कार आदि विरादरी द्वारा सुनिश्चित विशेष पंचायत से हुआ करता था परंतु समय व परिस्थितियों के अनुसार कुछ परिवर्तन होना स्वाभाविक है फिर भी इस जाति की सामाजिक,शैक्षणिक व आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय है तथा अशिक्षा अज्ञानता,पाखंड आर्थिक विपन्नता से ग्रसित होकर देश की मुख्य धारा से विरक्त हैं ,परंतु लोकतांत्रिक व्यवस्था में समुचित प्रतिनिधित्व हेतु संवैधानिक दृष्टिकोण से जातियों की सूची यथा महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ प्रदेश में गोंड समूह की सब ट्राइब के रूप में सेपरेट ट्राइब होते हुए अनुसूचित जनजाति की सूची में श्रेणीबद्ध हैं ! तथा उ प्र,बिहार,पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा,झारखंड,पंजाब,हरियाणा,गुजरात, उत्तराखंड, चंडीगढ, दिल्ली प्रदेश में पिछड़ी जाति की श्रेणी में राज्य/केंद्रीय सूची में सूचीबद्ध है ! लेकिन असम प्रदेश में लाखों की संख्या में स्थायी रूप से निवासरत भर/राजभर जाति (कुछ समकक्ष उपजातियां भी प्रचलित हैं) जातियों की किसी भी सूची में प्रदेश एवं केंद्रीय सूची में अंकित नहीं है जिससे जाति प्रमाणपत्र के अभाव में इस वर्ग के लोग अपने मूलभूत संवैधानिक अधिकारों से वंचित हो रहे हैं ऐसी दशा में स्वजातीय हित मे पंजीकृत सामाजिक संस्था अखिल भारतीय राजभर संगठन द्वारा दिनांक 06/08/2021 को सरकार से जातियों की सूची में सम्मिलित किया जाना निवेदित है ! तदनुसार Director,-Assam institute of research for tribal&schedule castes ,assam govt के पत्र सं AIRSTC(BRRS)/180/2021/14 दिनांक 13/08/2021 द्वारा कार्यवाही प्रचलित है !
    अतः आपसे प्रबल अनुरोध है कि भर/राजभर जाति के लोगों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करते हुए मानवीय आधार पर नीतियों में शिथिलता बरतते हुए संस्था द्वारा अनुरोधनुसार प्रदेश व केंद्रीय स्तर पर जातियों की सूची में नवीन प्रविष्टि किये जाने का तत्सम्बधित को आदेशित करने की कृपा करें ! आभारी रहूंगा कि कृत कार्यवाही से हमें भी अवगत कराने का कष्ट करेंगे !
    सम्मान सहित
    प्रतिलिपि - उपरोक्तानुसार
    संलग्नक -यथोपरि
    भवदीय
    डॉ पंचम राजभर
    Ex-राष्ट्रीय महासचिव -अखिल भारतीय राजभर संगठन -- आवास - दुबरा बाजार ,बरदह जनपद आज़मगढ़ उ प्र 276301 मोबाइल 9452292260/9889506050 - email -drprajbhar1962@gmail.com

    ReplyDelete
  13. https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1990327937794720&id=100004525982420&sfnsn=wiwspwa

    ReplyDelete